मूवी रिव्यू: सन्नी संस्कारी की तुलसी कुमारी Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari Review Out

आज देखी “सन्नी संस्कारी की तुलसी कुमारी”। अब चूंकि ये Dharma Production की फिल्म है, तो जाहिर है कि खर्चा तो होना ही था। लेकिन देखने से ज़्यादा लगता है कि पूरा बजट एक ही शानदार लोकेशन और सेट डिज़ाइन पर उड़ा दिया गया, और फिर फिल्म को सीधे Netflix बेचकर पैसा निकाल लिया गया। शायद यही वजह है कि इसे थिएटर में रिलीज़ करने का रिस्क भी लिया गया ,लेकिन सच कहें तो ये फिल्म थिएटर-फ्रेंडली बिल्कुल नहीं है। फिल्म की शुरुआत काफ़ी दमदार अंदाज़ में होती है। पहले सीन में बाहुबली के कटप्पा वाले पल की झलक देकर दर्शकों का ध्यान खींचने की कोशिश की गई। लेकिन जैसे ही कहानी आगे बढ़ती है, सब गड़बड़ होने लगता है। न कहानी का कोई सिर है, न पैर। डायरेक्टर जैसे बार-बार कन्फ्यूज हो जाते हैं कि आखिर दर्शकों को क्या दिखाना है। हर थोड़ी देर में एक नया गाना ठूंस दिया जाता है। न गाने याद रहते हैं, न उनका कोई मतलब है। बस ऐसे लगता है जैसे फिल्म को खींचने का यही तरीका बचा है। अगर फिल्म का कोई एक पॉज़िटिव पॉइंट है तो वो है मनीष पॉल। उन्होंने फिल्म में अपना किरदार बिल्कुल वैसे निभाया है जैसे रणवीर सिंह ने “बैंड बाजा बारात” में किया था। हाव-भाव, डायलॉग डिलीवरी और एनर्जी – सबकुछ हूबहू कॉपी। यह मौलिक नहीं कहा जा सकता, लेकिन कम से कम दर्शकों के लिए यह हिस्से मज़ेदार बन जाते हैं। मनीष की एंट्री और उनकी एक्टिंग फिल्म को कुछ देर के लिए जिंदा कर देती है। फिल्म में अचानक से करण जौहर का कैमियो आता है। यह सीन छोटा है लेकिन बेहद मजेदार। दर्शक एक पल के लिए सचमुच चौंकते हैं और हँस भी पड़ते हैं। यह सीन फिल्म का वो हिस्सा है जो सबसे ज़्यादा फ्रेश और एंटरटेनिंग लगता है। बाक़ी फिल्म की हालत वही पुरानी – कहानी बिखरी हुई, कॉमेडी ज़बरदस्ती की, और गानों की भरमार। बीच-बीच में कुछ चुटकुले काम कर जाते हैं, लेकिन ज्यादा देर टिकते नहीं। “सन्नी संस्कारी की तुलसी कुमारी” एक ऐसी फिल्म है जिसे थिएटर में देखना समय और पैसे दोनों की बर्बादी है। हाँ, मनीष पॉल की कॉमिक टाइमिंग और करण जौहर का कैमियो इसे थोड़ी देर के लिए रोचक बना देते हैं, लेकिन कुल मिलाकर फिल्म का स्वाद फीका और बेस्वाद है। Incut Bollywood

Arun Sharma - Incut Bollywood

10/2/20251 min read